Friday, December 30, 2011


संत श्री तुलसीदास जी रचित राम चरित मानस में शबरी से भेंट प्रसंग के समय श्री राम अपनी नवधा भक्ति के लक्षण उन्हें बताते हैं॥ श्री राम द्वारा भिलनी शबरी को दिए गए इस सत्संग प्रसंग ने मन को छू लिया॥ बहुत ही सहज और सुंदर तरीके से संत शिरोमणि श्री तुलसी दास जी ने उस प्रसंग का वर्णन किया है॥
नवधा भक्ति कहऊँ तेहि पाहीं, सावधान सुनु धरु मन माहीं॥
प्रथम भक्ति संतन्ह कर संगा, दूसरि रति मम कथा प्रसंगा॥
श्री राम शबरी से कहते हैं की मैं तुझसे अपनी नवधा भक्ति कहता हूँ॥ तू सावधान होकर सुन॥ और मन में धारण कर॥ पहली भक्ति है संतों का सत्संग॥ दूसरी भक्ति है मेरे कथा प्रसंग में प्रेम॥
गुरु पद पंकज सेवा तीसरी भक्ति अमान,
चौथी भक्ति मम गुन गन करई कपट तजि गान॥
तीसरी भक्ति है अभिमान रहित होकर गुरु के चरण कमलों की सेवा॥ और चौथी भक्ति यह है कि कपट छोड़ कर मेरे गुन समूहों का गान करें ॥
मंत्र जाप मम दृढ़ विस्वासा, पंचम भजन सो बेद प्रकासा॥
छठ दम सील बिरति बहु करमा, निरत निरंतर सज्जन धर्मा ॥
मेरे (राम) मंत्र का जाप और मुझमें दृढ़ विश्वास-यह पांचवी भक्ति है जो वेदों में प्रसिद्द है॥ छठी भक्ति है इन्द्रियों का निग्रह, शील (अच्छा सवभाव या चरित्र), बहुत कार्यों से वैराग्य और निरंतर संत पुरुषों के (आचरण) में लगे रहना॥
सातवं सम मोहि मय जग देखा, मोते संत अधिक करी लेखा॥
आठँव जथा लाभ संतोष, सपनेहूँ नहि देखई परदोषा॥
सातवीं भक्ति है जगत भर को सम भाव से मुझमें ओत-प्रोत (राममय) देखना और संतों को मुझसे भी अधिक करके मानना॥ आठवीं भक्ति है जो कुछ मिल जाए उसी में संतोष करना॥ और स्वप्न में भी पराये दोषों को न देखना॥
नवम सरल सब सन छलहीना, मम भरोस हियं हर्ष न दिना नव महू एकऊ जिन्ह के होई, नारि पुरूष सचराचर कोई॥
नवीं भक्ति है सरलता और सबके साथ कपट रहित बर्ताव करना॥ ह्रदय में मेरा भरोसा रखना और किसी भी अवस्था में हर्ष और दैन्य (विषाद) का न होना॥ इन् नवों में से जिनके पास एक भी भक्ति होती है, वह स्त्री पुरूष, जड़ चेतन कोई भी हो..॥
सोई अतिसय प्रिय भामिनी मोरें, सकल प्रकार भक्ति दृढ़ तोरें
जोगी ब्रिंद दुर्लभ गति जोई, तो कहूँ आज सुलभ भई सोई॥
हे भामिनी! मुझे वही अत्यन्त प्रिय है॥ फिर तुझमें तो सभी प्रकार की भक्ति दृढ़ है॥ अतएव जो गति योगियों को भी दुर्लभ है॥ वही आज तेरेलिये सुलभ हो गई॥
इस प्रसंग के शुरू में ही श्री राम ने साफ शब्दों में कहा है कि मैं सिर्फ़ एक भक्ति का ही सम्बन्ध जनता हूँ॥ जाति पांति, कुल, धर्म, बड़ाई, धन, बल, कुटुंब, गुण और चतुरता-इन सबके होने पर भी भक्ति रहित मनुष्य कैसा लगता है जैसे जलहीन बादल (शोभाहीन) दिखाई देता है॥

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