Sunday, January 1, 2012

तुम आनन्दस्वरूप हो। तुम्हें कौन दुःखी कर सकता है? एक-दो तो क्या... जगत के सारे लोग, और यहाँ तक कि तैंतीस करोड़ देवता मिलकर भी तुम्हें दुःखी करना चाहें तो दुःखी नहीं कर सकते, जब तक कि तुम स्वयं दुःखी होने को तैयार न हो जाओ। सुख-दुःख की परिस्थितियों पर तुम्हारा कोई वश हो या न हो परन्तु सुखी-दुःखी होना तुम्हारे हाथ की बात है। तुम भीतर से स्वीकृति दोगे तभी सुखी या दुःखी बनोगे। मंसूर को लोगों ने सूली पर चढ़ा दिया, परन्तु दुःखी नहीं कर सके। वह सूली पर भी मुस्कराता रहा। 
Pujya asharam ji bapu 

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